Saturday, April 10, 2010

अपनो को अपना कभी हम कह न सके

अपनो को अपना कभी हम कह न सके
गैर तो गैर थे उनको कभी अपना न सके
मन्जिल बिल्कुल पास मे थी
और हम कुछ भी हासिल कर न सके
अपनो ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके
इससे तो अच्छा था कि हम इन्सान ही न कहलाते
इन्सान होकर जान्वरो जैसा बर्ताव सह न सके
अपनो ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके
दिल रोया तो बहुत पर मुह से कुछ कह न सके
हम खडे के खडे रहे और वो कह सुन के चल दिये
हम ने तो उन्हे हमेशा अपना समझा
पर वो कभी भी हमे समझ न सके
वार था उनका छोटा पर उससे मिला जो घाव
उसको हम सह न सके
अपने ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके

Sunday, February 28, 2010

holi ke rang apnoke sang

होली आयी होली आयी कर के बहाने अनेक
यार के घर पे जाने का और यार को घर पे बुलाने का
आया ये अवसर खूब नेक
होली पर यारो सब कुछ माफ होता है
जो पीता है वो जीता है
बाक़ी दुनिया में रखा क्या है
होली में यार हमारा सबसे हसीन लगता है
बिन लगाये गुलाल वो रंगीन दिखता है
पर हम भी ठहरे आशिक
यार के हमने ना जाने कहाँ कहाँ रंग और गुलाल लगा दिया
उसको अपनी बाहों में भर के
 मानो जैसे सारा जहाँ  हमने पा लिया
डर  के मरने से अच्छा है
कुछ कर के नाम कमा जाओ  
जो दिल की बात है कह दो
वरना बिन होली खेले ही अपने  अपने घर जाओ
बुरा ना मानो होली है
इसका मतलब तो अब समझ जाओ
जिसको जिस से मिलना है
गुलाल रंग या पिचकारी ले कर
तुम उसके घर हो आओ
पर ध्यान रहे की तुम्हारे रंग से
उसकी दुनिया बेरंग ना ho  जाए

Saturday, February 27, 2010

कुदरत ने बख्शी जो चीजे

कुदरत ने बख्शी जो चीजे
इंसान ने मिलावट कर डाली
ये कैसी अजब खुदगर्जी है
ईमान में मिलावट कर डाली
जहां सोने चांदी की थी दुनिया
ना सोना रहा ना चांदी रही
पीतल में मिलावट कर डाली
कुदरत ने ..........
जहाँ दूध दही की नदिया थी
पानी में मिलावट कर डाली
ये कैसी अजब खुद गरजी है
इम्मान में मिलावट कर डाली
जहां गंगा यमुना सरस्वती थी बहती
वहां खून की नदिया कर डाली
कुदरत ने ..........

Friday, February 19, 2010

hum ne kisi ki yaad me sapne kai sanjo liye

हम ने किसी की याद में
सपने कई संजो लिए
वो हमारे हुए न हुए
हम तो उनके हो लिए
चाहत में उनकी हम ने
न जाने क्या क्या कर डाला
हम उनके पीछे पीछे चले
और वो किसी के साथ हो लिए
हम ने किसी की याद में .......
भूल कर भी भुला न पाए उन की यादो को
याद जब भी उनकी आई
आँखों में आंसू अनेक आ गए
हम ने किसी की याद
में सपने कई संजो लिए     

Tuesday, February 9, 2010

सपने तो सपने होते हैं यारो

चला  एक दिन सवेरे सवेरे
बिना आँख खोले ही खोले
ना रास्ता ना मंजिल ही कोई
ना थी रोशनी ना आदमी ही कोई
पर चलता गया चलता गया
अपनी धुन में होकर सवार
जब मंजिल ना मिली
तो गया मैं हिम्मत हार
पर हिम्मत हार कर भी मैंने
हौसला ना छोड़ा
मंजिल थी दूर नहुत
पर मैं चलता ही चलता गया
चलते चलते सपने मे मैंने
एक इमारत थी पायी
पर जब आँख खुली तो सपना टूटा
हुई बहुत मायूसी क्योकि
जो इमारत सपने में मिली थी
वो हकीकत में रहने के काम ना आई
सपने तो सपने होते हैं यारो
ये बात समझ में मेरी आई

Monday, February 1, 2010

मैं बेचारा प्यार का मारा

आँख खुली तो हुआ सवेरा
सांझ ढली तो रात
और किसी अपने के बिना
क्या दिन और क्या रात
और मज़ा तो तब है
जब दिन दिन ही रहे
और रात ही रात
प्यार में अक्सर ऐसा ही होता
सूना है हमने ये है राज़
पर मैं बेचारा मैं क्या जानू
प्यार में क्या क्या है होता
हमने तो जब प्यार है करना चाहा
नफरत के सिवा कुछ है ना पाया
पर उम्मीद पे दुनिया कायम है
हमने इस बात से अपने दिल को है समझाया
कभी ना कभी हमको भी मिलेगा
एक जीवन साथी प्यारा

हमदम ना मिला

हम हम से गये, हमदम के लिए
हमदम ना मिला, हम सब से गये
हम सब से गए
पर हमदम ना मिला अपने लिए
हमदम की वजह
हम कर ना सके कुछ अपने लिए
कुछ करना चाहा जब हमदम ने मेरे लिए
हम शर्म के मारे कुछ कह ना सके
और अब हमको हमदम मिले
तो क्या मिले
जब दुनिया को हम
अपना हमदम सौप चले

Friday, January 29, 2010

ये आग वो आग है ज़ालिम

अपनों की कोई बात
दबी हुई जैसे कोई आग
एक ना एक दिन उभर आती है
ना चाह कर भी चिंगारी
शोला बन जाती है
जितना भुलाने की कोशिश करो
उतनी ही याद आती है
अपनों का गम क्या होता है
कोई हमदर्द ही समझ सकता है
क्योंकि आम आदमी तो हंसकर चल देता है
इस गम की दवाई
दुनिया के किसी बाज़ार में नही मिलती
और ये आग वो आग है ज़ालिम
जो जलाए नही जलती
और बुझाए नही बुझती

Wednesday, January 27, 2010

मेरी अपनी कहानी

सुनो मेरी अपनी कहानी
कुछ मेरी जुबानी कुछ औरों की जुबानी
सब रंग होकर भी बेरंगी सी लगी हमें जिंदगानी
कहने को अपनो का साथ मिला
और मिला गैरों से प्यार
इतना सब कुछ हो कर भी ना मिला
तो ऊपर वाले का हाथ
फूलों में रह कर भी कांटो का सहा हमने
हर गम को खुशी से गले लगाया हम ने
अपने छूटे रिश्ते टूटे पर हिम्मत ना हारी
कहने को तो बहुत था लेकिन थे अपने हाथ खाली
पढ़ लिख कर भी अनपढ़ कहलाये
जब दुनिया की समझ है हम को आयी
दुनिया का क्या है दुनिया का काम है कहना
मेरी मानो तो मस्ती में रहकर मस्ती से ही जीना

Tuesday, January 19, 2010

तुमने ना सुनी कोई बात मेरी

तुमने ना सुनी कोई बात मेरी
वरना बहुत कुछ बताना था तुम्हे
होठो से ना कह कर दिल से कहना था
तुम ने ना समझा कभी अपना हमें
वरना हर हाल दिल का सुनाना था तुम्हे
हम तड़पते रहें दिल का हाल कहने के लिए
तुम मिले एक बार और हंस के चल दिए