Monday, February 1, 2010

मैं बेचारा प्यार का मारा

आँख खुली तो हुआ सवेरा
सांझ ढली तो रात
और किसी अपने के बिना
क्या दिन और क्या रात
और मज़ा तो तब है
जब दिन दिन ही रहे
और रात ही रात
प्यार में अक्सर ऐसा ही होता
सूना है हमने ये है राज़
पर मैं बेचारा मैं क्या जानू
प्यार में क्या क्या है होता
हमने तो जब प्यार है करना चाहा
नफरत के सिवा कुछ है ना पाया
पर उम्मीद पे दुनिया कायम है
हमने इस बात से अपने दिल को है समझाया
कभी ना कभी हमको भी मिलेगा
एक जीवन साथी प्यारा

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