Saturday, April 10, 2010

अपनो को अपना कभी हम कह न सके

अपनो को अपना कभी हम कह न सके
गैर तो गैर थे उनको कभी अपना न सके
मन्जिल बिल्कुल पास मे थी
और हम कुछ भी हासिल कर न सके
अपनो ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके
इससे तो अच्छा था कि हम इन्सान ही न कहलाते
इन्सान होकर जान्वरो जैसा बर्ताव सह न सके
अपनो ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके
दिल रोया तो बहुत पर मुह से कुछ कह न सके
हम खडे के खडे रहे और वो कह सुन के चल दिये
हम ने तो उन्हे हमेशा अपना समझा
पर वो कभी भी हमे समझ न सके
वार था उनका छोटा पर उससे मिला जो घाव
उसको हम सह न सके
अपने ने दिये जो जख्म वो हम सह न सके

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

Richa P Madhwani said...

nice post

http://shayaridays.blogspot.com