Tuesday, February 9, 2010

सपने तो सपने होते हैं यारो

चला  एक दिन सवेरे सवेरे
बिना आँख खोले ही खोले
ना रास्ता ना मंजिल ही कोई
ना थी रोशनी ना आदमी ही कोई
पर चलता गया चलता गया
अपनी धुन में होकर सवार
जब मंजिल ना मिली
तो गया मैं हिम्मत हार
पर हिम्मत हार कर भी मैंने
हौसला ना छोड़ा
मंजिल थी दूर नहुत
पर मैं चलता ही चलता गया
चलते चलते सपने मे मैंने
एक इमारत थी पायी
पर जब आँख खुली तो सपना टूटा
हुई बहुत मायूसी क्योकि
जो इमारत सपने में मिली थी
वो हकीकत में रहने के काम ना आई
सपने तो सपने होते हैं यारो
ये बात समझ में मेरी आई

1 comment:

Fauziya Reyaz said...

bahut achhi rachna, padh kar dil khush ho gaya