सुनो मेरी अपनी कहानी
कुछ मेरी जुबानी कुछ औरों की जुबानी
सब रंग होकर भी बेरंगी सी लगी हमें जिंदगानी
कहने को अपनो का साथ मिला
और मिला गैरों से प्यार
इतना सब कुछ हो कर भी ना मिला
तो ऊपर वाले का हाथ
फूलों में रह कर भी कांटो का सहा हमने
हर गम को खुशी से गले लगाया हम ने
अपने छूटे रिश्ते टूटे पर हिम्मत ना हारी
कहने को तो बहुत था लेकिन थे अपने हाथ खाली
पढ़ लिख कर भी अनपढ़ कहलाये
जब दुनिया की समझ है हम को आयी
दुनिया का क्या है दुनिया का काम है कहना
मेरी मानो तो मस्ती में रहकर मस्ती से ही जीना
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2 comments:
Yatharth ko vyakt kartii bahut sundar kavitaa . aap kii agalii kavitaa kaa intjaar raheg
Wah Wah maza aa gaya aap ki kavita padh ke . Kai dino baad bahut hi sundar kavita padhne ko mili . Itni kam umar me itna kadva anubhav aaj ke smaaj ka chehraa uzagar kartaa hai. Likhte rahiye aap ko aur smaaj ko is se bahut kuchh mulega aisi meri kamnaa hai
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